Sunday, April 12, 2009

कालेज के आखिरी दिनों में प्यार का इम्तहान था मेरा

कभी कभी कुछ अनकहा सा एहसास आखों से पढ़ना था मुझे..........जो कुछ समझना था हम दोनों को बिन कहे ही ..........दिल की दुनिया में हिचक को भूल मैं ऐसा न कर सका जिसका अफसोश मुझे हमेशा ही दुखी करता है ..............काश की मैं बन जाता वो सब जो वो देखना चाहती थी ......कह जाता वो सब जो वो सुनना चाहती थी...........तोड़ देता सारी बंदिशें शर्मों हया की निकल जाता दूर दुनिया की आखों से ............समय का साथ मिला था मुझे जिसको मैं ना साथ दे पाया ..........आज फिर मेरी यादों में बसी वो तस्वीर शायद धुंधली न होती .........।

कालेज के वो आखिर दिन में समय का बीतता हर लम्हां हसीन था जिसमें खो गये थे हम ................कितना कुछ था एक दूसरे को कहने के लिए फिर भी खामोशी अपनी आगोश में लेकर सुकून देती थी ..............शर्म की लाली गालों से ऊपर आखों से होती हुई लबों पर आकर रुक जाती थी...............एक एक लफ्ज में प्यार दिखता ....................उसकी कही सारी बातों को अनसुना करते हुए गौर से सुनता हुआ समय का पास से गुजरना पता ही चलता .........
समय को पकड़ने की ख्वाहिश को कभी न की थी ...........सामने बनता हुआ प्यारा इंद्रधनुषी रंग भी उसके सामने फीका लगता । कभी न सोचा उससे दूर जाने को ..............एक अधिकार था जो अनकहें से प्यार से बन चला था वो भी समझती थी खुद से ........मेरा अपना सा सब कुछ लगता था उन दिनों, सुबह होती तो इंतजार करते मिलने का शाम से रात होती हुई यादों में खो जाती ...............आखिर में क्या कहते कि हम फिर मिलेंगें शायद कभी न उसने मुझसे कहा और न मैंने ही ..............बस समझते समझाते हुए चले जाते । वक्त के साथ ही साथ सब कुछ हमारे साथ बदलता , चलता रहा .........जीवन के उस राह पर खड़े हम दोनों एक दूसरे को देखकर आज खुश नहीं थे .........दोनों की राहें यहां से विपरीत थी ...............एक दर्द जिसको बयां करना मुश्किल था हमारे लिए , एक टीस थी बेबसी की ........... आज मुस्कुराहट थी जरूर पर रौनक गायब थी , बातें वैसी ही ताजगी मुरझाई सी थी ...... चेहरा शांत सा , कोमलता छलकाता हुआ मायूस था मुझे देख ...........अपनी नजरों को इधर उधर करने हुए कुछ बयां करना चाहता था जिसे मैं महसूस करके भी नहीं महसूस कर रहा था । खुद से संघर्ष कर लिया था मैंनें कुछ न कहने का ...............इस पल को जीना आसान न था ............आज एक दिखावा था हम दोनों के बीच में ......कठोर मन की कोमलता झलकती रही पर फिर भी हम इस आह में चुप रहे कि शायद वो सब कुछ कहे दे जो मैं आज सुनना चाहता हूँ .........चुपचाप रहना भी दर्द को दिखा रहा था...........आखिर में चलते चलते अपनी राह में हम चले ही दिये ........उन्ही यादों के सहारे बिन कहे सुने.........।

आखिर मुलाकात की दास्तान हसीन , जवां दफ्न हैं आज भी यादों में ।

11 comments:

  1. नीशूजी बहुत अच्छी रचना है1
    बीते हुये लम्हों को कब तक सजाना
    आ ही जाता है यादों से दिल लगाना
    सुन्दर अभि्व्यक्ति के लिये बधाई

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  2. यह रूमानी अंदाज तो अच्छा है, लेकिन इसका स्थान (कालेज) और समय (अध्ययन काल) गलत है.

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  3. beete hue samay ko to bas yaad hi kiya ja sakta hai...nice...

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  4. बहुत ही सुन्दर!आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
    मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,
    जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन है कि आप को ये पसंद आयेंगे।

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  5. bhaiyya ,aapka ye rang bhi hai malum na tha .. is rachna ne to hame ek naye neeshu ko dehne ke liye kah rahi hai .jai ho , aap ne to bahut bhavuk kar diya ...

    badhai

    maine bhi kuch naya likha hai . padhiyenga jarur..

    विजय
    http://poemsofvijay.blogspot.com

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  6. ye poora lekh hi apne aap men ek kavita hai, yaadon ko samete hue. achchi lagi. neeshu, kuchh samay se tumhara koi sampark chinha nahin hai. kyun?

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  7. पढ़कर आपके प्यार की पराकाष्ठा को समझना अच्छा लगा ।

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  8. नीशू जी , आपका ये नया रंग हमें बहुत ही पसंद आया , ऐसे ही लिखते रहें आप ।शुभकामनाएं

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  9. aap pyar gajab ka tha . accha laga padh kar

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  10. aisa hota hai nishu bhai . badiya likha hai

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