Friday, September 25, 2009

शाम >>

शाम की छाई हुई धुंधली


चादर से

ढ़क जाती हैं मेरी यादें ,

बेचैन हो उठता है मन,

मैं ढ़ूढ़ता हूँ तुमको ,

उन जगहों पर ,

जहां कभी तुम चुपके-चुपके मिलने आती थी ,

बैठकर वहां मैं

महसूस करना चाहता हूँ तुमको ,

हवाओं के झोंकों में ,

महसूस करना चाहता हूँ तुम्हारी खुशबू को ,

देखकर उस रास्ते को

सुनना चाहता हूँ तुम्हारे पायलों की झंकार को ,

और

देखना चाहता हूँ

टुपट्टे की आड़ में शर्माता तुम्हारा वो लाल चेहरा ,

देर तक बैठ

मैं निराश होता हूँ ,

परेशान होता हूँ कभी कभी ,

आखें तरस खाकर मुझपे,

यादें बनकर आंसू उतरती है गालों पर ,

मैं खामोशी से हाथ बढ़ाकर ,

थाम लेता हूं उन्हें टूटने से ,

इन्ही आंसूओं नें मुझे बचाया है टूटने से ,

फिर मैं उठता हूं

फीकी मुस्कान लिये

एक नयी शुरूआत करने ।

Friday, September 11, 2009

उछाल दो बातें

उछाल दो बातें उन पर
आज ये कहता है मन
सामने कर दो बयां काला दिल
जिसमें सपने सजाये आज तुमने
कह ना कितना कह ना था ,
यूं सोच न पाता कोई ,
है रूखसत जान अपनी ,
अब भला डरना क्या ?
उछाल दो बातें ....... ,
कर्म ऐसा भी नहीं की
दर्द भरता वो रहे ,
जाने कितना ही जिया है ,
आज मन मारे सही ,
कह दिया है मैं ये बात
उसके सामने ,
हो भला जो हो बुरा ,
कर अभी तू फैसला ,
कर अभी तू फैसला ।