Tuesday, May 12, 2009

अनसुलझा सा कुछ ये रिश्ता आज भी है

कुछ भी सही लगता रहा न जाने क्यों गलत होते हुए भी ? हमेशा से एक तलाश अधूरी लिए दिल के कोने में कभी नहीं भटका अचानक ही कुछ ऐसा जिसकी मुझे जरूरत थी पर शायद उम्मीद तो कभी भी न थी । पहली मुलाकात की याद शायद ही कभी जेहन से उतर पाये । इन सब के बीच खुद इतना खुश हो जाना था जिसको किसी के सामने दिखाया और बताया न जा सकता है ।
हम किसी ट्रेन या बगीचे या फिर राह चलते न मिले थे हमको तो बस मिलना था इसलिए मिले थे । कहीं कोई जान पहचान न होते हुए भी अजनबी न थे । मोबाइल का जमाना मेरे लिए अच्छा रहा प्यार की शुरूआत से लेकर अंत तक साथ रहा । इसलिए इसका शुक्रगुजार हूँ । किस्मत ने टक्कर दी और मैं न जाने क्यों वो कर बैठा जिसको मैं कभी न कर सकता था । धीरे धीरे हम इतने पास पास हुए कि दूर होने का गम पल पल घुटन देता । कहते हैं कि ज्यादा प्यार हो तो फिर वहां पर कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर होने वाला है । एक साल में मिलाने से लेकर बिखराब तक का सफर तय कर लेने के बाद भी आज जब सोचता हूँ मैं सब बातों को तो न जाने एक विश्वास अब भी कायम सा लगता है जो कि है ही नहीं ।
मुझे लगता रहा है कि मैंने जो किया वह सही है पर फिर भी अकेला हूँ क्यों ? शायद इसका जवाब मेरे पास नहीं है और न कभी होगा । इसंान अपनी हार पराजय को बहुत ही मुश्किल से स्वीकार करता है और मैं उनमें से हूँ हार कर भी न जाने जीत का एहसास पाता है । दूर रहने से कोई रिश्ता कमजोर नहीं होता बल्कि और मजबूत ही होता लगा मुझे । लड़ाई करके किसी को भूलना हो ही नहीं सकता बल्कि और भी पास आ जाते हैं । गिले शिकवे जरूर होते हैं पर प्यार और भी ज्यादा ।

ये सब समझाना चाहता था मैं पर कभी सफल नहीं हो पाया हूँ मैं न जाने क्यों या फिर वो समझना ही न चाहते हो । जो भी है आज मेरे पास शुकून और दुख दोनों देता है ।

13 comments:

  1. प्यार में कुछ ऐसा ही होता है । बेहतरीन संस्मरण रहा

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  2. अपनी इन पंक्तियों से आपके संस्मरण को काव्य से जोड़ना चाहता हूँ
    कुछ प्रसंग जीवन में आये बन कर याद अतीत हो गये
    परिचय गाढ़ा हुआ किसी से आगे चल कर मीत हो गये
    सादर
    अमित

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  3. दूर रहने से कोई रिश्ता कमजोर नहीं होता

    sahi kaha aapne

    apne jajbaat baantne ke liye shkriya

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  4. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
    चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है

    गार्गी

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  5. हुज़ूर आपका भी ....एहतिराम करता चलूं .......
    इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ

    कृपया अधूरे व्यंग्य को पूरा करने में मेरी मदद करें।
    मेरा पता है:-
    www.samwaadghar.blogspot.com
    शुभकामनाओं सहित
    संजय ग्रोवर

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  6. स्वागत है. शुभकामनायें.

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  7. rishte jitani jaldi sulajh jate hain utna hee theek rahta hai, narayan narayan

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  8. बहुत सुन्दर रूप से आपने बीते हुए लम्हों को शब्दों में उतारा है । पढ़कर अच्छा लगा ये संस्मरण । ऐसे ही लेखते रहें । शुभकामनाएं

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  9. रिश्ता कुछ ऐसा ही होता है दोस्त । वाकई मजा आ जाता है पड़कर । बधाई

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  10. aap ka lekhan bahut hi bhavpurn hai . dil tak utrta hai shabd aap ka . badhai

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  11. padhkar bahut hi accha likha aapne bite dino ko

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  12. aap sabhi ka bahut bahut dhanyavaad

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  13. kya baat hai gajab ka likha hai aapne nishu ji.

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